श्री स्वामी समर्थ (श्री अक्कलकोट स्वामी समर्थ) 15 शताब्दी के भगवान दत्तात्रय यानि श्रीमद नरसिम्हा सरस्वती के अवतार माने जाते है।
श्री स्वामी समर्थ महाराज, अक्कलकोट –
“श्री गुरुचरित्र” इस पवित्र ग्रंथ में उल्लेख है की सन 1458 में श्रीमद नरसिम्हा सरस्वती ने कर्दालिवन में महासमाधि ली थी। 300 साल से भी अधिक समय तक वो उस समाधी में रहे। लेकिन एक दिन वहा पर एक लकडहारा आने से और उसके पेड़ काटने की वजह से श्रीमद नरसिम्हा सरस्वती अपनी लम्बी समाधी से जागृत हो गए। उस दिव्य शक्ति को आज हम श्री स्वामी समर्थ नाम से जानते है। समाधी से निकलने बाद श्रीमद नरसिम्हा सरस्वती ने सम्पूर्ण देश की यात्रा की।
कहा जाता हैं स्वामी समर्थ कर्दाली जंगल में से आये है। उन्होंने कई बार जगन्नाथ पूरी, बनारस (काशी), हरिद्वार, गिरनार, काठियावाड़ और रामेश्वरम और साथ ही चीन, तिब्बत और नेपाल जैसे विदेशो में भेट दी। अक्कलकोट में स्तायिक होने से पूर्व वो मंगलवेढ़ा शहर जो पंढरपुर(सोलापुर जिला) के नजिक है वहा पर रहा करते थे।
22 साल तक वो अक्कलकोट के बाहरी हिस्से में रहे। कर्नाटक के गणगपुरा में लम्बे समय तक रहने के पश्चात उन्होंने अपनी निर्गुण पादुका अपने शिष्यों की दे दी और उसके बाद वो कर्दाली जंगल में जाने के लिए रवाना हुए।
श्री स्वामी समर्थ महाराज समाधी
सन 1878 में चैत्र माह (अप्रैल-मई) के तेरावे दिन श्री स्वामी समर्थ ने समाधी ली।